रविवार, 9 मार्च 2014

          राँझा और "खाप"
    -----------------

एक और हीर फना हुई आज,

उसके अपने ही थे इस बार भी ,

कल "खाप" की पंचायत जो थी।

ओ बे-गैरत राँझे ----

नहीं सुनता अब भी तेरा खुदा ,

या "इनके " खुदा कोई और है ?

     ---रामजी गिरि